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कल्याण-मन्दिर स्तोत्र
टिप्पणी कार्य से कारण का पता चलता है । जैसा कार्य होता है, उसी के अनुसार उसका कारण होता है । आचार्य कहते हैं कि-'हे भगवन् ! मैं दुःख की नागिन से डॅसा जा रहा हूँ। इससे पता चलता है कि मैंने कभी आपकी उपासना नहीं की, आपका पवित्र नाम नहीं सुना । यदि उपासना की होती, तो यह दुःख न भोगना पड़ता।' प्रभु को भुला देना ही दुःख का कारण है, और प्रभु को स्मृति में रखना ही सुख का आधार है।
जन्मान्तरेऽपि तव पाद-युगं न देव !
__ मन्ये मया महितमोहितदान-दक्षम् । तेनेह जन्मनि मुनीश ! पराभवानां,
जातो निकेतनमहं मथिताशयानाम् ॥ हे देव ! मैं निश्चित रूप से यह समझ गया हूँ कि मैने जन्म-जन्मान्तर में भी कभी अभीष्ट फल प्रदान करने में पूर्णतया समर्थ आपके चरण-कमलों की सम्यक रूप से उपासना नहीं की।
हे मुनीश ! यही कारण है कि मैं इस जन्म में हृदय को दलन करनेवाले असह्य तिरस्कारों का केन्द्र बन गया है। आपके चरणों का पुजारी तो कभी भी तिरस्कृत नहीं होता।
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