________________
१४
कल्याण-मन्दिर स्तोत्र
पुरुषों का प्रभाव अचिन्त्य होता है। वे जो कुछ भी करके दिखा दें, वह सब असम्भव भी सम्भव है। उनका प्रत्येक कार्य चमत्कारमय होता है, रहस्यपूर्ण होता है।
टिप्पणी प्रस्तुत श्लोक में बताया गया है कि भगवान् अनन्त गरिमा वाले हैं, फिर भी उनको हृदय में धारण कर भक्तजन बड़े हल्के रहते हैं और शीघ्र ही संसार-सागर मे पार हो जाते हैं । यहाँ विरोधाभास अलंकार है। गरिमा का अर्थ-भार-वजन होता है। हाँ, तो जो भारी है, उसे धारण कर कोई कैसे हलका रह सकता है ? जिस नाव में भार हो, और वह भी अनन्त, भला वह हल्की रह कर झटपट कैसे समुद्र को पार कर सकती है ?
विरोध-परिहार के लिए आचार्य ने यहाँ 'गरिमा' का अर्थ भार न लेकर, कुछ और ही लिया है। वह यह कि 'भगवान् अनन्तगुणों के गौरव से यानी महिमा से युक्त हैं....।' गरिमा का अर्थ 'गौरव' भी होता है। प्रथम 'भार' अर्थ से विरोध आता है, तो दूसरे ‘गौरव' अर्थ से उसका परिहार हो जाता है।
[ १३ ] क्रोधस्त्वया यदि विभो प्रथमं निरस्तो,
ध्वस्तास्तदा बत कथं किल कर्म-चौराः ? प्लोषत्यमुत्र यदि वा शिशिराऽपि लोके,
नीलद्रुमाणि विपिनानि न कि हिमानी ?
Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org