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२१६] ईसरमुणिकहियऽत्तकहाए गद्दभपुच्छगाहिगामउडसुअदिटुंतो, राईभोयणदोसा य ।। १३५ इय भणिय लद्धभिक्खे उज्जाणं मुणिवरम्मि संपत्ते । भुत्तुत्तरे सपुत्तो भट्टो वि तयंतियं पत्तो ॥ १८८ ॥ नाऊण तस्स भावं भणियं मुणिणा तओ 'महाभाग !। रोगविओगनिमित्तं नियाणचाओ हवइ पढमं ॥१८९॥ सइ तम्मि मुद्धकिरिया आरोग्गनिबंधणं धुवं होइ । इहरा अणत्यहेऊ जायइ दुग्गहियभूओ व्व ॥ १९० ॥ तत्य वहा-ऽलिय-चोरिय-मेहुन्न-परिग्गहाई पाबाई । एगंतेण दियुत्तम ! सयलरुयाणं नियाणाई ॥ १९१ ॥ एएसि परिचाया सम्मं धम्मोसहं पियंतस्स । जायइ नियमाऽऽरोग्गं निच्छयसारस्स पुरिसस्स ॥ १९२॥ 5 परमेटिनमोकारो दुक्कडगरिहा ससत्तिओ दा । इंदिय-कसायविजओ एसा धम्मोसही परमा ॥ १९३ ॥ एयाए संपत्ती न अप्पपुनस्स नियमओ होइ । संपत्तीय उ नियमा नीरोगत्तं नरो लहइ ॥ १९४ ।। माहप्पमणप्पं चिय एकेकस्स वि मुयम्मि सुपसिद्धं । बजरियं तस्स दियुत्तमस्स मुणिणा पबंधेण ॥ १९५ ।। काऊण गंठिभेयं तत्तो संपत्तविमलसम्मत्तो । सुयसहिओ दुत्ति दिओ जाओ सड्ढी अइवियड्ढो ॥ १९६॥ रोगो वि भावियप्पा अहियासइ रोगवेयणं सम्मं । कम्मपरिणामभावी परिवज्जियसेसपडियारो ॥ १९७ ॥ 10 अनम्मि दिणे आभोइऊण सोहम्मकप्पनाहेण । दहधम्मो त्ति सतोसं पसंसिओ सुरसभामज्झे ॥ १९८ ॥ अचलत्तवनणं से असद्दहंता दुवे सुरा तत्तो । कयवेजसरूवा ते भणंति सयणाण पञ्चक्खं ।। १९९ ॥ 'जइ कुणसि अम्ह वयणा किरियं निस्संकमाणसो भट्ट !। ता आजम्ममरोगा चंगं अंगं तुह करेमो' ।। २००॥ सयहिं तओ भणियं कहेह भो ! केरिसी तई किरिया?' ते बिंति 'पुवदिवसे महुअवलेहो लिहेयन्वो ॥२०१॥ पच्छिमदिणम्मि पाणं भणियं जुन्नासवस्स नियमेण । भोत्तव्यं च निसाए समक्खणं सट्टियं कूरं ॥ २०२॥ 15 जल-थल-खयरसमुत्थं पिसियं विविहोसहेहि सम्मीसं । भोत्तव्वं एकेकं सत्तयमिच्चाइ अन्नं पि' ॥ २०३॥ तो भणइ रोगबडुओ 'अलं अलं एरिसीए किरियाए । मा बीयं पि भणिस्सह एरिसवयणं मम समक्खं ॥२०४॥ सावयधम्मविरुद्धं निसिभत्तं सव्वहा मए चत्तं । महु-मंसाइचउक्कं जावज्जीवाए परिमुक्कं ॥ २०५॥ तो पडिभणंति विज्जा 'देहो धम्मस्स साहणं पढमं । एयस्स कए बंभण ! कज्जमकज्जं न गणियव्वं ॥२०६॥ सइ नीरोगे अंगे पायच्छित्तं गुरुं पि चरिऊण । कीरइ चिरं विसुद्धो धम्मो अह सत्थपरमत्थो । २०७॥ 20 भो भो पंडियबडुया ! पडिवोहह मूढबडुययं एयं । कीस उवेक्खह दुक्खे निवडतं जाणमाणावि ? ॥२०८॥ तो बिति बंधवा तं 'वच्छय! पडिवज्ज संगयं एयं । सन्चमरोगे अंगे कीरइ धम्मो हि अब्भहिओ' ॥ २०९॥ जाहे नहि पडिवज्जइ ताहे सयहिं राइणो सिटुं । तेणावि जुत्तिसारं भणिओ तं चेव सविसेसं ।। २१०॥ तोसंसारभउब्जिग्गो परिहरियाकिच्चकरणववसाओ । उल्लबइ रोगसड्ढो 'अहो ! वियड्ढो जणो एस ॥ २११॥ 25 पक्खालणबुद्धीए को लिंपइ असुइणा नियं देहं ? । को कद्दमेण मद्दइ धोयणहेउं अहयवत्थं? ॥ २१२ ॥
को जजरेइ कुंभे जउविणिओयत्यमेत्थ जाणंतो? । को भंजइ नियनियम पायच्छित्ताणुचरणत्थं ? ॥२१॥ अपंच
अत्यच्चारण सरीररकावणं कुणइ जाणगो पुरिसो। न सरीरपरिच्चाया जुत्ता अत्थस्स परिरक्खा ॥ २१४॥ जइ सच्चमिणं मन्नह ता युज्झह अत्थसाहुलं देहं । देहसमं पुण जीवं, रक्खा जीवस्स तो जुत्ता ॥ २१५॥ 30 नियमचाया देहो रक्खिजइ, नियमपालणा जीवो । ता कह नियमच्चाया सरीरपरिवालणं जुत्तं ? ॥२१६॥
१,३ दिउत्तं जे०विना ॥२ संपत्तीमो नि जे.॥४मरोगं चंगं भ्रा० ॥ ५ कहेहि जे० ॥ ६ समंत्रणं जे. भ्रा०॥ ७ धोवण जे०विना ॥ ८ सङ्केत:-“साहुलं ति सदृशम्" ॥
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