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१३४ पुहवीचंदचरिए छटे सूरसेण-मुत्तावलीभवे
६. १६१किंच
संपाइममुहुमतसा तीरंति न वारिउं तहिं जेण । पञ्चक्खदंसिणो वि हु तेण निसाए न अँति ।। १६१ ॥ इंदियविजओ आरंभवज्जणं भोयणाइपरिसुद्धी । पसुभावपरिचाओ दिणभुत्तीए गुणा हुँति ।। १६२ ।।
इय गुण-दोसवियारा कुणसु पवित्ति निवित्तिमवि मित्त!। मा गामउडसुओ इव कयग्गहो पावसु अणत्थं ॥१६३॥ 5 तहाहि
[१०. गामउडसुयदिहतो] गामउडे कालगए घरिणी भरिऊण भत्तुणो भइरी। भणिया सुएण 'अम्मो! परिजूरसि कीस तं एवं ? ॥१६४॥ आएसकारओ हं साहेमि पओयणं तुहासेस । किं खिज्जिएण कज्जे अम्मो ! एगंतनिरुवाए ?' ॥ १६५ ॥
तीए वुत्तं 'पुत्तय ! तुह जणओ आसि निच्छयपहाणो। तं पुण बालसहावो सिढिलायसि सयलकज्जेम् ॥१६६॥ 10 सीयंति तेण वच्छय ! संपइ सयलाइं गेहकजाई । वलिमड्डाए वड्डो होइ तओ सोगसंतावो' ॥ १६७ ॥
पडिभणइ नंदणो तो 'अजप्पभिई अहं पि सव्वत्थ । निच्छयसारो होहं मा माइ ! अनिव्वुया होमुं॥१६८॥ कयनिच्छएण एवं कयाइ परिसागरण अइ तेण । नस्संतो पहुवयणा हत्थं पुच्छे खरो धरिओ ॥ १६९ ॥ पहरंतो वि पयाम पच्छिमपाएहिं वच्छ-दसणेसु । भणिएणावि न मुक्को जणणीवयणं सरंतेण ॥ १७० ॥ लत्तागाढपहारेहिं पाविओ दारुणं तओ वसणं । जाओ हासहाणं जणस्स अन्नाणदोसाओ ॥ १७१ ॥
[गामउडसुयदिलुतो समत्तो. १० ] इय अमुणियगुण-दोसो अत्थाणे जग्गही इह परत्य। लहइ अणत्यं मूढोऽवरो वि गामउडतणओ व्व" ॥१७२॥ इय सो बहुं पि भणिओ न निअत्तो रत्तिभुत्तिओ वणिओ। अट्टज्झाणोवरओ उववन्नो वग्गुलो वरओ ॥१७३॥
सम्मत्तहीलणाओ निव्वत्तियसाणुबंधितिरिनामो । मरिउं तहिं तर्हि चिय उववन्नो पंचवाराओ ॥ १७४ ॥ 20 तत्तो वि चम्मचिडओ दो वारा रत्तिभुत्तबहुमाणा । पत्तो कोसियभावं जंबुयभावं च दो वारे ॥ १७५॥
मैंसा-ऽसुइ-मडयासी दुहिओ दीणो तओ विमरिऊण । जाओ उज्जेणीए दियाइणो देवगुत्तस्स ॥ १७६ ॥ नंदाए घरिणीए कुच्छीए पढमपुत्तभावेण । नवरं जम्माउ चिय अविउत्तो रोगजालेण ॥ १७७ ॥ एगस्स पडीयारो जा कीरइ कह वि तस्स जणणीए । कुप्पंति दोन्नि तिन्नि व तावऽन्ने गाढपीडयरा ॥१७८॥
जीयासाविरहाओ अकयभिहाणो पवढिओ एसो । रोगो त्ति तओ पयर्ड जायं नामं जणे तस्स ।। १७९ ॥ 25 अह सो ईसरसड्ढो कयाइ जागरिधम्मजागरिओ । संवेगाइसयाओ उल्लसियचरित्तपरिणामो ॥ १८०॥
तोडियनिविडकुंडुवय-घर-घरिणिसिणेहबंधणो धणियं । धम्मेसरगुरुमूले पडिवन्नो साहुसच्चरियं ॥ १८१॥ सनाणचरणरसिओ विहरंतो सो वि मुत्तिसुहतिसिओ । पत्तो कयाइ वि गुणी उज्जेणि पुरवरिं स मुणी ॥१८२॥ पक्खखवणावसाणे सुयबिहिणा गोयरं गवेसन्तो । नियमंदिरमायाओ दिट्ठो सो देवगुत्तेण ॥ १८३ ॥
नाणि त्ति सबहुमाणं पमोयपुलओलिराहदेहेण । नमिऊण कयंजलिणा तओ वि परिपुच्छिओ एवं ॥ १८४ ॥ 30 'भयवं ! दयापहाणा तुब्भे ता मह सुयस्स एयस्स । रोगोवसमोवायं कयप्पसायं कहह कं पि' ॥ १८५ ॥
तो भणइ मुणी 'दियवर ! भिक्खं भमिराण अम्ह न हु कप्पो। कीरइ कहापबंधो जं गिहिगेहे मुहुत्तं पि ॥१८६॥ तह वि तुह भट्ट ! सीसइ परमत्थो एत्थ एगवयणेण । धम्मोसहिप्पओगो उचिओ एयस्स बालस्स' ॥१८७॥
१ होह खं१ ॥ २ उप्पन्नो खं१ खं२ ॥ ३ सकेत:-"वरउ त्ति वराकः" ॥ ४ मंसासी मडया जे.॥ ५ कुप्पिति दुन्नि भ्रा० ॥
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