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________________ ( ५२ ) संग्रहो द्वेधा ॥ ६८ ॥ संग्रहनय के दो भेद है । सामान्य संग्रहो यथा सर्वाणि द्रव्याणि परस्पर अविरोधीनि ॥ ६९ ॥ सामान्य संग्रह नय जैसे सतरूपसे सब द्रव्य परस्पर अविरोधी है । सब द्रव्य द्रव्यरूपसे समान सत् महासत्को समान रूपसे धारण करनेवाले है | ( शुद्ध अभेद संग्रह ) विशेष संग्रहो यथा सर्वे जीवाः परस्परं अविरोधिनः ॥ ७० ॥ आलाप पद्धति विशेषसंग्रह - जैसे सब जीव जीवपनेसे परस्पर अविरोध है, समान है || ( अशुद्ध भेद संग्रह | विशेषार्थ- सब द्रव्योंको एक द्रव्य जाति रूपसे ग्रहण करनेवाला नय संग्रह नय है । उसमें से किसी एक के अंतर्गत भेदोंका संग्रह करनेवाला विशेष संग्रह नय है । जैसे सब द्रव्योंको सामान्य द्रव्य जाति अपेक्षा द्रव्य कहना यह सामान्य संग्रह नय है । तथा उसके अवांतर भेदोंको एक द्रव्य रूपसे ग्रहण करना यह विशेष संग्रह है । जैसे - जिसको पहले सामान्य रूपसे द्रव्य रूपसे ग्रहण किया था उसीको अवांतर भेद रूप जीव रूपसे ग्रहण किया यह विशेष संग्रह नय है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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