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________________ नय अधिकार ( ५१ ) भाविकालमे निष्पन्न होनेवाली क्रियाको वर्तमानमे निष्पन्न कहना यह भावी नैगम नय है । कर्तुमारब्धं, ईषत् निष्पन्नं, अनिष्पन्नं वा वस्तु निष्पन्नवत् कथ्यते यत्र स वर्तमान नैगमो यथा - ओदनः पच्यते ।। ६७ ।। प्रारंभ किये किसी कार्यको वह ईषत् निष्पन्न अधूरा बना हुआ हो अथवा आगे निष्पन्न होनेवाला हो वर्तमान में निष्पन्न कहना यह वर्तमान नैगम नय है । पारद्धा जा किरिया पवणविहाणादि कहदि जो सिद्धा । लोए य पुच्छमाणं तं भणइ वट्टमाणणयं ॥ चावल पकाने को डाल रहा है उस समय किसने पूछा क्या करते हो तो कहना कि मैं भात पका रहा हूं यह वर्तमान नगम नय है || उसी प्रकार कोई पुरुष जंगलमे लकडी तोडने जा रहा है । उसको किसीने पूछा कहां जाते हो । तो वह कहता है स्तंभ ( खंबा | लानें जाता हूं अभी खंबा बना नही । परन्तु खंबा बनानेके संकल्पसे लकडीलानेको जा रहा है । इस प्रकार भावि पर्यायका वर्तमानमे संकल्प करना यह वर्तमान नैगमनय है । चावल पक वास्तव में चावल पकानेको डाल रहा है पर भात कहा जाता है । परन्तु भावी पर्यायका वर्तमानमे आरोप कर भात पका रहा हूं ऐसा कहना यह वर्तमान नैगम नय है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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