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नय अधिकार
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अकिट्ठिमा अणिहणा ससिसूराईण पज्जया गिण्हई : जो सो अणाइणिच्चो जिणभणिओ पज्जयत्यिणओ॥२७।। पर्यायार्थी भवेन्नित्याऽनादि नित्यार्थ गोचर: ।। चंद्राकॅमेरू भू-शैल-लोकादेः प्रतिपादकः । सं. नयचक्र १
मेरू आदि पर्वत, सूर्य, चंद्र, आदि विमान पृथ्वी, पर्वत लोकाकाशप्रमाण महास्कंध ये सब अकृत्रिम अनाधिनिधन नित्य है । यह अनादि नित्य पर्यायार्थिक नय है।
सादि-नित्य-पर्यायाथिको यथा सिद्धपर्यायो नित्यः ।। ५९ ॥
कम्मखयादुप्पणो अविणासी जो ह कारणाभावे । इदमेवमुच्चरंतो भण्णइ सो सादि णिच्चणओ ।। २०१ ।। पर्यायार्थी भवेत् सादि व्यये सर्वस्य कर्मणः । उत्पन्न-सिद्धपर्याय-ग्राहको नित्यरूपकः ॥ २ ॥ आदत्ते पर्ययं नित्यं सादि च कर्मणः क्षयात् । स सादिनित्य पर्यायाथि नामा नयः स्मृतः ।। ८ ।।
शुद्ध द्रव्याथिक नय की विवक्षा न करते हुये संपूर्ण कर्मका क्षय होनेपर जो चरम शरीराकार सिद्ध पर्याय उत्पन्न होती है वह सादि नित्य है ऐसा सादि नित्य पर्यायार्थिक नयसे कहा है ।
सत्ता-गौणत्वेन उत्पाद--व्यय-ग्राहकस्वभावः अनित्य-अशुद्ध-पर्याय-ग्राहको यथासमयं समयं प्रति पर्यायाःविनाशिनः ॥ ६० ॥
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