________________
( ४६ )
कर्मनिर्जनितो नैव नोत्पन्नस्तत्क्षयेन च । नयः परमभावस्य ग्राहको निश्चयो भवेत् ॥ सं. नयचक्र १० 1 )
आलाप पद्धति
गिण्हई दव्वसहावं असुद्ध सुद्धोपचार परिचत्तं । सो परमभाव ग्राहीं णायच्वो सिद्धिकामेण ।। २६ ।। ( नयचक्र )
यद्यपि आत्मा अनन्त धर्मात्मक है । तथापि कर्मजनित औदायिकादि अशुध्दोपचार भाव तथा कर्मक्षयनिमित्तक शुध्दोपचाररूप क्षायिकभाव इनकी अपेक्षा न रखते हुये जो नय स्वतः सिध्द सहजज्ञानस्वभावरूप सहजशुध्द पारिणामिक भावको ग्रहण करता है उसे परमभाव ग्राहक शुध्द तय द्रव्यार्थिक कहते है ॥ ( आलाप पध्दति सूत्र १९ )
विशेषार्थ- शुध्द द्रव्यार्थिक नय परनिरपेक्ष वस्तुको अभेद स्वरूप ग्रहण करता है । और अशुध्द द्रव्यार्थिक नय परसापेक्ष भेदरूपसे अशुध्दताको ग्रहण करता है ।
( इस प्रकार द्रव्यार्थिक नयके दशभेदोंका वर्णन समाप्त || )
अथ पर्यायार्थिकस्य षड् भेदाः ।। ५७ ।
पर्यायार्थिक नयके छह भेद है । अनादि- नित्य पर्यायार्थिको
पर्यायो नित्यः मेवदिः ॥ ५८ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
यथा पुद्गल
www.jainelibrary.org