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________________ नय अधिकार ( ४५ ) स्वद्रव्यादि-ग्राहक-द्रव्याथिको यथास्वद्रव्याविचतुष्टयापेक्षया द्रव्यं अस्ति । ५४ । अस्तित्वं वस्तुरूपस्य स्वद्रव्यादि चतुष्टयात् । एवं यो वक्त्यभिप्रायं स्वादि ग्राहक निश्चयः ॥ ( स नयचक्र ) स्वद्रव्य स्वक्षेत्र स्वकाल स्वभाव इस प्रकार स्वचतुष्टय की अपेक्षा द्रव्यके अस्तित्व को ग्रहण करनेबाला नय स्वद्रव्यादि ग्राहक द्रव्यार्थिक नय है । द्रव्य स्वचतुष्टयसे सदा अस्तित्वरूप (आलाप पद्धति सूत्र १८८ ) परद्रव्यादि-ग्राहक-द्रव्याथिको यथा परद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षया द्रव्यं नास्ति ॥५५ ।। नास्तित्वं वस्तुरूपस्य परद्रव्याद्यपेक्षया । वां छतार्थेषु यो वक्ति परद्रव्याद्यपेक्षकः । (९ सं. नयचक्र ) विवक्षित पदार्थमे परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल, परभाव इनकी अपेक्षासे सदा नास्ति है। इस प्रकार परद्रव्य सापेक्ष द्रव्याथिक नयकी अपेक्षासे विवक्षित वस्तुमे सदा नास्तित्व है। ( आलाप पद्धति सूत्र १९८ ) परम-भाव-ग्राहक-द्रव्याथिको यथा ज्ञानस्वरूप: आत्मा । अत्र अनेकस्वभावानां मध्ये ज्ञानाख्यः परमस्वभावो गृहीतः ॥ ५६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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