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( ४४ )
आलाप पद्धति
भेदे सदि संबंधं गुण गुणियाईण कुणइ जो दवे । सो वि असुद्धो दिवो सहिओ सो भेद कप्पेण ॥
( नयचक्र २३ ) अभेद द्रव्यमें गुण गुणी संबंध भेद रूपसे वर्णन करना अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय है।
अन्वयसापेक्षो द्रव्याथिको यधा गुणपर्यायस्वभावं द्रव्यं ॥ ५३॥
संपूर्ण गुण-पर्याय स्वभाव जिसमे अंतर्भूत है ऐसे एक अन्वयसापेक्ष द्रव्यको ग्रहण करना यह अन्वयसापेक्ष शुद्ध द्रव्याथिक नय है । जैसे द्रव्य गुण-पर्याय-स्वभाववान है।
णिस्सेस सहावाणं अण्वयरूवेण दव्व दव्वेहि । दव्वठवणो हि जो सो अण्वयदव्वत्थिओ भणिदो।। (नयचक्र) अशेष गुणपर्यायान् प्रत्येक द्रव्यमब्रवीत् । सोऽन्वयो निश्चयो हेम यथा सत् कटकादिषु ॥ यः पर्यायादिकान् द्रव्यं ब्रूते त्वन्वयरूपतः । द्रव्यार्थिकःसोऽन्वयाख्यः प्रोच्यते नयवेदिभिः ।।
( सं. नयचक्र ) जो प्रत्येक द्रव्यके संपूर्ण गुणपर्यायोंको अन्वयरूपसे एक द्रव्य नामसे ग्रहण करना उसको अन्वयसापेक्ष द्रव्याथिक नय कहते है । आधारभूत द्रव्य के होनेपर ही गुणपर्याय उसके आधेय होते है इसलिये प्रत्येक गुण - पर्याय अपने अपने एक द्रव्य के अन्वय सापेक्ष रहते है ।
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