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( ४२ )
आलाप पद्धति
। यद्यपि वस्तु सत् उत्पाद व्यय ध्रौव्य युक्त है तथापि उनमेंसे उत्पाद व्यय अंश धर्मोको गौण अविवक्षित कर वस्तूके ध्रुवत्व धर्मकी मुख्य विवक्षासे द्रव्यको नित्य ध्रुव टंकोत्कीर्ण कहना यह उत्पाद व्यय निरपेक्ष सत्ता ग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक नय है।
भेद कल्पना निरपेक्षः शुद्धो द्रव्याथिको, यथा- निजगुण--पर्याय--स्वभावात् द्रव्यं अभिन्नं ।। ४९ ॥
भेद कल्पना निरपेक्ष गौण अविवक्षितकर शुद्ध द्रव्याथिक नयसे अभेद विवक्षासे जीव अपने गुण पर्याय स्वभाव भेदसे अभिन्न शुद्ध एक द्रव्य स्वरूप है।
गुणगुणियाइचउक्के अत्थे जो णो करेइ खलु भेदं । सुद्धो सो दव्वत्थो भेद वियप्पेण णिरवेक्खो॥
( नयचक्र २० ) कर्मोपाधि-सापेक्ष अशुद्ध द्रव्याथिको, यथा- क्रोधादि कर्मजभावः आत्मा ॥५०॥
कर्मोपाधि सापेक्ष अशुद्ध द्रव्याथिक नयसे आत्मा कर्मोदय जन्य क्रोधादिभाव सहित है ॥
भावेसु राग आदि भावो जीवम्मि जो दु जंपेदि । सो हु असुद्धो उत्तो कम्माणोपाधिसावेक्खो ।
( नयचक्र २१)
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