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नय अधिकार
( ४१ ) इदानीं ऐतेषां भेदाः उच्यन्ते ॥ ४५ ॥ आगे इनके उपनयों भेद कहते है ॥ द्रव्याथिकस्य दश भेदाः ।। ४६ ।। द्रव्याथिक नयके १० भेद है ॥
कर्मोपाधि' निरपेक्षः शुद्ध द्रव्याथिकः । यथा संसारी जीव सिद्ध सदृक् शुद्धात्मा । ४७ ।
उत्पाद-व्ययरे --गौणत्वेन सत्ता ग्राहक: शुद्ध द्रव्याथिक: । यथा द्रव्यं नित्यं ॥ ४८ ॥
यद्यपि संसारी जीव कर्मोपाधि सहित है तथापि उसको गौणकर जीवके सदा विद्यमान कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्ध ध्रुव स्वभाव नयदृष्टीसे स्वतःसिद्ध आत्माका स्वभाव सिद्धजीवके समान शुद्ध होने के कारण शुद्ध द्रव्याथिकनयकी मुख्य विवक्षा रख कर संसारी जीवको सिद्ध समान शुद्धात्मा कहा है
( सव्वेसुद्धा हु सुद्धणया )
१ कम्माणं मज्झगयं जीवं जो गहइ सिद्ध संकाशं । भण्णइ सो सुद्धणओ खलु कम्मोपाधि णिरवेक्खो ॥
( नयचक्र १८ ) २ उत्पाद व्ययं गौणं किच्चा जो गहइ केवला सत्ता। भण्णइ सो सुद्धणओ इह सत्ता गाहको समये ।।
(नयचक्र १९ )
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