SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४० ) आलाप पद्धति इन सात नयोंमें पहले ४ नय नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋतुसूत्र ये अर्थनय है। इनका विषय प्रधानतासे अर्थ पदार्थ होता है। शेष तीन नय शब्द समभिरूढ एवंभूत व्यंजननय अथवा शब्दनय कहे जाते है। इसमें व्यंजनकी शब्दकी प्रधानता होती है । उपनयाश्च कथ्यन्ते ॥ ४२॥ नयानां समीपा उपनया: ॥ ४३ ॥ आगे उपनयोंका वर्णन करते हैं। जो नयोंके समीप है। अर्थात् नयके समान कुछ विवक्षा रखकर पदार्थोका ज्ञान करानेमे कारण है उन्हे उपनय कहते है। आत्मनः उपसमीपे प्रमाणादीनां वा तेषां उपसमीपे नयन्ति इति उपनयाः ॥ ( स नयचक्र । ___ जो नय आत्माके अथवा प्रमाणादि के उससपीप ले जाते है उन्हे उपनय कहते है। ये नय भी भिन्न भिन्न विवक्षासे वस्तु के अंशधर्मोको बतलाते है इसलिये इन्हे उपनय कहते है । ये भी प्रमाण के समान सम्यग्ज्ञान है। सद्भुत व्यवहारः असद्भुत व्यवहारः उपचरित व्यवहारः इति उपनयाः त्रेधा ।४४। १ सद्भत व्यवहारनय २ असद्भूतव्यवहारनय ३ उपचरित व्यवहारनय इस प्रकार उपनयके तीन भेद है ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy