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________________ आलाप पद्धति ४ ) धारणा- अवाय ज्ञान होनेपर उस ज्ञानका कुछ काल तक क्षयोपशमानुसार विस्मरण न होनेका जो संस्कार ज्ञान वह धारणा ज्ञान है। अवग्रह ईहा अवाय धारणाको लोक व्यवहारमें स्पष्ट प्रत्यक्ष ज्ञान कहते है इसलिये उपचारसे इसको सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहते है । वास्तवमें वह परोक्ष ज्ञान ही है। - मतिज्ञान इंद्रियां और मन इनकी सहायता पूर्वक जानता है। इसलिये परोक्ष है। मतिज्ञानसे जाने हुये पदार्थका विशेष ज्ञान अथवा उसके संबंधसे अन्य पदार्थका ज्ञान वह श्रुत ज्ञान है । श्रुत ज्ञान मतिपूर्वक होता है इसलिये वह परोक्ष है । अवधि और मनःपर्यय इंद्रियोंकी सहायताके विना ज्ञान मात्रसे रूपी पदार्थोको द्रव्य क्षेत्र काल भाव की मर्यादामें जानते है इसलिये देश प्रत्यक्ष है। केवलज्ञान लोक अलोकवर्ती सब ज्ञेय पदार्थोको उनके त्रिकालवर्ती भत भविष्य वर्तमान सब पर्यायोंका युगपत् जानता है । इसलिये सकल प्रत्यक्ष है। पांचों ज्ञानोंमें मति अवधि मनःपर्यय केवल ये चार ज्ञान स्वार्थ है और प्रमाण रूप है। श्रुतज्ञान स्वार्थ और परार्थ रूप है प्रमाण रूप और नय रूप है। जो ज्ञानात्मक है स्वके लिये बोध करना यह जिसका प्रयोजन है वह स्वार्थ है । जो ज्ञान वचनात्मक है तथा परके लिये बोध कराना यह जिसका प्रयोजन है वह परार्थ है । श्रुत ज्ञान आगमके माध्यमसे सब पदार्थोंको जान सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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