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( ३४ )
आलाप पद्धति
प्रायको लेकर ग्रहण करनेवाले ज्ञानको नयज्ञान कहते है ।
प्रमाणज्ञानके ५ भेद है । १ मतिज्ञान २ श्रुतज्ञान ३ अवधिज्ञान ४ मनःपर्ययज्ञान ५ केवलज्ञान। इनमे पहले दो ज्ञान परोक्ष प्रमाण है। । आद्ये परोक्षं ) शेष तीन ज्ञान अवधिमनःपर्यय-केवलज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण है ( प्रत्यक्षमन्यत् )
प्रत्यक्ष- जो ज्ञान ( अक्षं आत्मानं प्रतीत्य । इंद्रियोंकी अपेक्षा न रखते हुये आत्ममात्रसापेक्ष है । तथा (विशदं प्रत्यक्षं) स्पष्ट निर्मल प्रतिभास है उसे प्रत्यक्ष कहते है। . परोक्ष- जो ( पराणि अक्षाणि इंद्रियाणि ) पर इंद्रियां
और मन इनकी सहायतासे प्रतिभास होता है उसे परोक्ष ज्ञान कहते है।
मति-श्रुतज्ञान परोक्ष प्रमाण है। अवधिज्ञान मनःपर्ययज्ञान विकल प्रत्यक्ष ( देश प्रत्यक्ष ) है । तथा केवलज्ञान सकल प्रत्यक्ष है ।
१ मतिज्ञान- पांच इंद्रियां और मन इनकी सहायतासे जो पदार्थका ज्ञान होता है वह मतिज्ञान है। इसके ४ भेद है। १ अवग्रह २ ईहा ३ अवाय ४ धारणा इस ज्ञानको उपचारसे सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहा है।
१ अवग्रह- सामान्य प्रतिभास लक्षण दर्शन होनेपर जो पदार्थ विशेषका प्रथम ग्रहण उसको अवग्रह कहते है।
__ जैसे प्रथम कोई पदार्थ है ऐसा सामान्य प्रतिभास दर्शन होनेपर सफेद वर्णवाला कोई पदार्थ है ऐसा जो पदार्थ विशेषका प्रथम ग्रहण वह अवग्रह ज्ञान है। इसके दो भेद है।
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