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________________ स्वभाव अधिकार ( ३१ ) चेतनस्वभावः मूर्तस्वभावः विभाव स्वभावः अशुद्ध स्वभाव: उपचरित्तस्वभाव: एतविना त्रयाणां ( धर्म-अधर्म - आकाश ) द्रव्याणां षोडश स्वभावाः सन्ति ॥ ३० ॥ उक्त एक्कीस स्वभावोंमे से चेतनस्वभाव, मूर्तस्वभाव. विभावस्वभाव अशुद्धस्वभाव, उपचरितस्वभाव छोडकर शेष १६ स्वभाव धर्म, अधर्म, आकाश इन तीन द्रव्योंमे होते है । यद्यपि अचेतन द्रव्य पांच है तथापि इनमेसे पुद्गल द्रव्य जीवके चेतन गुणघातक होनेसे उसे व थंचित चेतन कहा है । इसलिये पुद्गल द्रव्यको छोड़कर चार द्रव्य अचेतन कहे । तथा जीव द्रव्य अमूर्त है तथापि कर्मबद्ध होनेपर कथंचित मूर्त स्वभाव कहा जाता है इसलिये यहां धर्म, अधर्मं, आकाश इन तीन द्रव्योंके उपरोक्त १६ स्वभाव कहे है | काल द्रव्य अचेतन है अमूर्त है तथापि बहूप्रदेशी स्वभाव नही है । इसलिये काल द्रव्यको छोड़कर तीन द्रव्योंमे उपरोक्त १६ स्वभाव कहे है । तत्र बहुप्रवेशत्वं विना कालस्य पंचदश स्वभावाः ॥ ३१ ॥ कालद्रव्य एकप्रदेशी है, बहुप्रदेशी नही है। इसलिये बहुप्रदेशत्व विना कालद्रव्यके १५ स्वभाव कहे है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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