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( १८ )
आलाप पद्धति
ऐसे अविभागी अंशको परमाणु कहते है । वह परमाणु षट्कोन होता है। सूक्ष्म होता है । इंद्रियगोचर नही होता । जिसका विभाग नही होता ऐसे अविभागी अंशको परमाणु कहते है ।
अत्तादि अत्तमज्झं अत्ततं व इंद्रिये गेज्झं । जं दवं अविभागी तं परमाणुं विजाणाहि ।।
जिसका आदि, मध्य, अन्त, स्वयं अपना परमाणु रूप ही है । जो इंद्रिय द्वारा ग्राह्य नहीं है ऐसा जो अविभागी अंश उसको परमाणु जानो ।
वर्ण-गंध-रसैकैक-अविरुद्ध स्पर्शद्वयं स्वभाव गुणव्यंजन पर्यायाः ॥ २७ ॥
परमाणुमें दो स्पर्श ( स्निग्ध-रुक्ष इनमेसे कोई एक तथा शीत उष्णमेसे कोई एक, एक रस, एक गंध, एक वर्ण, एसे पांच गुण होते है। ये स्वभाव गुणव्यंजन पर्याय है। परमाणु अप्रदेशी एक प्रदेशी होता है । तथापि उसमे द्वयणुकादि स्कंधरूप होनेकी योग्यता है इसलिये उपचारसे वह बहुप्रदेशी कहा जाता है।
जो स्कंधरूप होने की योग्यता वह कारण परमाणु कहलाता हैं । जो स्कंधसे विभक्त अंतिम अंश वह कार्य परमाणु कहलाता है। परमाणु एक प्रदेशी होनेके कारण निश्चयसे निरंश निरवयव कहलाता है। परन्तु वह आकारसे षट्कोण होनेसे छह दिशासे छह परमाणुओंके साथ उसका संयोग होता है इसलिये वह उपचारसे सावयव कहा जाता है। परमाणुरूपसे सूक्ष्म है। स्कंधरूप होनेकी योग्यता है इसलिये कथंचित् स्कंध अपेक्षासे
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