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पर्याय अधिकार
( १७)
४ अंतराय कर्मके क्षयसे अनन्त वीर्य
ये कर्मोपाधि रहित चिरस्थायी होनेसे स्वभाव गुण व्यंजन पर्याय होते है।
पुद्गलस्य तु द्वयणुकादय: विभावद्रव्यव्यंजन पर्यायाः ।। २४ ॥
पुद्गल द्रव्यके दृयणुक, त्र्यणुक आदि स्कंधोको विभाव द्रव्य यंजन पर्याय कहते है। ये सादि सान्त, अनादि सान्त सादि अनन्त अनादि अनन्त ( मेरू पर्वत आदि अकृतिम तथा लोकाकाश प्रमाण महास्कर सूर्यादि विमानों का पृथ्वीकायशरीर आदि )
रस-रसान्तर-गन्ध-गन्धान्तरादिः विभाव गुणव्यंजन पर्यायः ।। २५ ॥
द्वयणु कादि विभाव पुद्गल स्कंधोमे एक वर्णसे अन्य वर्णातर रूप एकरससे अन्यरसांतर रूप एक गंधसे अन्य गंधांतर रूप एक स्पर्शसे अन्य स्पर्शातर रूप होनेवाला जो परिणमन वह विभाव गुण व्यंजन पर्याय है। जैसे आमका हरा वर्ण पीला वर्ण होता है।
अविभागी पुद्गल परमाणुः स्वभावद्रव्यः व्यंजन पर्यायः ।। २६ ॥
शुद्ध पुद्गल द्रव्यका अविभागी जो पुद्गल परमाणु वह स्वभाव द्रव्य व्यंजन पर्याय है । जिसका फिरसे विभाग न होवे
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