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पर्याय अधिकार
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वर्णातररूप जो अन्य अन्यवर्णादि परिणमन होता है वे विभाव अर्थ पर्याय है।
इस प्रकार संसारी जीव और पुद्गल द्रव्योंमे ही अन्य द्रव्यसापेक्ष विभाव अर्थ पर्यायरूप परिणमन होता है। स्वभाव अर्थ पर्याय सब द्रव्योंमे होता है । सब गुणके गुणांशोमे स्वभावविभाव अर्थ पर्यायरूपसे अगुरुलघुगुणके निमित्तसे षट्स्थान पतित हानि वृद्धिरूप परिणमन होता रहता है ।। इति अर्थ पर्यायाः ।
व्यंजनपर्यायाः ते द्विविधाः । स्वभाव विभाव भेदात् ॥ १९॥
गुणोंके समूहरूप द्रव्यके विकार को द्रव्यके आकाररूप परिणमनको व्यंजन पर्याय कहते है। वे व्यंजनपर्याय दो प्रकारके होते है । १ स्वभाव व्यंजन पर्याय २ विभाव व्यंजन पर्याय
विभावपर्यायाः चतुर्विधाः । नर नारकादि पर्यायाः । अथवा चतुरशीतिलक्षाः योनय ।२०।
संसारीजीवके विभाव व्यंजन पर्याय चार प्रकार है १ मनुष्यपर्याय, २ देव पर्याय, ३ तिर्यंच पर्याय, ४ नरकपर्याय अथवा भेद विस्तारसे ८४ लाख योनि भेद जीवके विभाव व्यंजन पर्याय है।
विभाव गुणव्यंजनपर्यायाः मत्यादयः॥२१॥
मतिज्ञान-श्रुतज्ञान-अवधिज्ञान-मनःपर्ययज्ञान ये चार संसारी जीवके विभाव गुण व्यंजन पर्याय है। जो पर्याय स्थूल
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