SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १४ ) आलाप पद्धति विभाव अर्थपर्यायाः षड्विधाः। मिथ्यात्वकषाय-राग-द्वेष-पुण्य-पापरूपाः अध्यवसायाः १८ संसारी जीवद्रव्यके विभाव अर्थपर्याय छह प्रकारके है। १ मिथ्यात्व २ कषाय ३ राग ४ द्वेष ५ पुण्य ६ पापरूप अध्यवसानभाव ॥ विशेषार्थ- जो पर्याये परसापेक्ष गुणविघातक कर्म के संयोग निमित्त षट् स्थान पतित हानिवृद्धि रूप गुणोंके लक्षण विरुद्ध परिणमित होता है उनको विभाव अर्थ पर्याय कहते है। मोहनीय कर्मके उदयके कारण आत्माके गुणोमे विपरीतता आती है। दर्शन मोहके कारण आत्माके सम्यग्दर्शन गुणमे जो विपरीत श्रद्धान होता है उसको मिथ्यात्व कहते है। चारित्र मोहके निमित्त संसारी जीवके चारित्रगुणमे जो विपरीतता आती है उससे जो कषाय परिणाम-रागद्वेष परिणाम तथा शुद्धोपयोगके विपरीत अशुद्धोपयोगरूप पुण्य-पापरूप अध्यवसान भाव ये संसारी जीवके विभाव अर्थपर्याय कहे जाते है। ___अशुद्ध अर्थपर्यायाः जीवस्य षट्स्थान गत कषाय हानिवृद्धि-विशुद्धि-संक्लेशरूप-शुभ-अशुभलेश्यास्थानेषु ज्ञातव्याः । ( पंचास्तिकाय गाथा १६ ) जीवमे कषायोंकी षट्स्थान पतित हानि-वृद्धि होनेके कारण विशुद्धि संक्लेशरूप शुभ-अशुभ लेश्याओंके स्थानरूप अशुद्ध विभाव अर्थ पर्याय होते है। पुद्गलस्य विभाव अर्थपर्यायाः द्वयणुकादिस्कंधेषु वर्णातरादि परिणमनरूपाः । पुद्गलद्रव्यके द्वयणुकादि स्कंधोमे वर्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy