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मों व्यंजनपर्याय वाग्गभ्यो ऽ नश्वरः । स्थिरः ।
सूक्ष्मः प्रतिक्षणध्वंसी पर्यायश्चार्यसंज्ञकः । ज्ञानार्णव ध ४५ । ___ व्यंजनपर्याय, स्थूल, इंद्रियगोचर, शब्दगोचर कुछ काल तक स्थिर रहता है।
अर्थपर्याय, सूक्ष्म ज्ञानगोचर, अवाग्गोचर प्रतिसयय क्षणविध्वंसी होता है।
अर्थपर्यायाः द्विविधाः स्वभाव विभाव भेदात् ॥ १६ ॥
अर्थपर्यायके २ भेद है । १ स्वभाव २ विभाव १ स्वभाव सदृश परिणमन उसको स्वभाव पर्याय कहते है। २ स्वभाव विरुद्ध परिणमन उसको विभाव पर्याय कहते है ।
अन्य द्रव्य के साथ संयोग न होने के कारण धर्म, अधर्म, आकाश, काल इनका स्वभाव परिणमन हीं होता है । जीव और पुद्गल इनका संयोग होकर जो विजातीय परिणमन होता है वह विभाव अर्थं पर्याय है । दो तथा दोसे अधिक परमाणुओंका स्कंधरूप जो परिणमन होता है वह सजातीय विभाव अर्थपर्याय है । कर्मोपाधि रहित जो जीवका स्वभा. वसदृश परिणमन होता है वह स्वभाव अर्थपर्याय है ।
अगुरुलघु विकाराः स्वभाव पर्यायाः ते द्वादशधा । षट्स्थान पतित हानिवृद्धिरूपाः ।
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