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________________ आकाश- जो जीवादि सब द्रव्योंको अवकाश देनेमे सहायक निमित्त है, उसे आकाश द्रव्य कहते है। ___ काल- जो जीवादि सब द्रव्योंके प्रतिसमय पर्यायरूपसे परिणमनमे सहायक निमित्त हैं, उसे काल द्रव्य कहते है। द्रव्यका लक्षण सत् अस्तित्वधर्म है । वह अस्तित्व, उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य इन तीन अंशधर्मोसे सहित है। उत्पाद-परिवर्तनशील द्रव्यमे अंतरंग निमित्त ( उपादान शक्ति ) बहिरंग निमित्त तदनुकूल अन्य द्रव्यका संयोग निमित्त मात्र इसके कारण अनंतर उत्तर नवीन पर्यायका उत्पन्न होना यह उत्पाद है। व्यय- द्रव्यकी पूर्व अवस्थाका नाश ( अभाव) होना व्यय है। ध्रौव्य- परिणमनशील द्रव्यके पूर्वोत्तर पर्यायोंका व्यय उत्पाद होते हुये द्रव्यमे पारिणामिक स्वभावरूप ध्रुवस्वभाव धर्मोका अन्वय रूपसे शाश्वत रहना उत्पाद नाश न होना ध्रौव्यधर्म कहलाता है। पूर्वं अनंत र क्रमबद्ध नियत पर्यायका व्यय यह उत्तर अनंतर नियत पर्यायके उत्पादका कारण होता है, इसलिये वस्तुमे कार्य कारण रूपसे प्रतिसमय होनेवाली उत्पाद व्यय रूप परिणमनरूप अर्थक्रिया नियत क्रमबद्ध है । इति द्रव्याधिकारः ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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