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________________ सत् द्रव्यलक्षणम् ॥ ६ ।। उत्पाद व्यय धौव्य युक्त सत् ॥ ७॥ ___ सत् द्रव्यका लक्षण है । जो उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य इनसे युक्त है वह सत है। विशेषार्थ- द्रव्यका सामान्य लक्षण सत् हैं । जो अस्तित्व धर्मसे युक्त सहित है अर्थात जिसमे पूर्वपर्यायका व्यय नवीन पर्यायका उत्पाद रूप परिणमन प्रतिसमय होता है । तथा उत्पाद व्यय परिणमन होते हुये भी जो गुण शक्ति स्वभावरूपसे सदा ध्रुव शाश्वत रहते है उनको द्रव्य कहते है । ये तीनो द्रव्यसे न भिन्न है, न भिन्न भिन्न समयमे होते है। इस लोकमे द्रव्य छह प्रकारके होते है । जीव, पुद्गल, धर्म अधर्म, आकाश, काल जीव- जीवका लक्षण चेतना उपयोग है । जो द्रव्य अपनेको तथा अन्य सब द्रव्योंको जानता है, देखता है, उसे जीव कहते है। पुद्गल- जो स्पर्श, रस, गंध, वर्ण गुणोंसे युक्त रूपी पदार्थ है वह पुद्गल द्रव्य है । जो इंद्रियोंसें देखे जाते है, ग्रहण किये जाते है, वे सब स्थूल पुद्गल स्कंध है। परमाणु या सूक्ष्म स्कंध इंद्रियोंके विषय नही होते है। धर्म- जो गतिमान जीव और पुद्गलको गमन क्रियामे सहायक निमित्त होता है, उसे धर्म द्रव्य कहते है। अधर्म- जो स्थितिमान् जीव पुद्गलको स्थिर होनेमे सहायक निमित्त होता है उसे अधर्म द्रव्य कहते है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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