________________
उपरिलिखित समी ग्रन्थ प्राकृत भाषा में रचे गये हैं ।
६ आलाप पद्धति- यह प्रस्तुत गद्य संस्कृत भाषामें रचित एक मात्र ग्रन्थ बहुतसमय से आ. देवसेन का उपलब्ध है। करीब ६५ वर्ष पूर्व पे मूलचन्द्रनी विलौआ प्र. आ. सागरने जैन सिद्धान्त संग्रहमे मूलरूप में प्रकाशित किया था। इसके करीब दशवर्ष वादकी पं. फूलचन्द जी. सि. शा. ने इसकी हिन्दी टीका कर नातेपुते से प्रकाशित किया था। अनन्तर पं रतनचन्द्रजी मुख्तार साहेब द्वारा सहित विस्तार की गई टीका यह महावीरजी से प्रकाशित हुआ था। किन्तु ये संस्करण अब उपलब्ध नही है । इस ग्रन्थमें १६ अधिकारों द्वारा द्रव्य गुण, पर्याय स्वभाव प्रमाणादिक विषयों पर सुन्दर विवेचन किया गया हैं । पूरा ग्रन्थ सूत्र रूप में है। नय और उपनयों का विस्तार से एक स्थान पर वर्णन करनेवाला अपने ढंग का एक अनूठा ग्रन्थ हैं। स्याद्वाद जानने के लिये यह नय वाद जानना आवश्यक हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थकी अनूदित पाण्डुलिपि श्री मुनि गुप्तिसागरजी महाराज व मा. पं. जगन्मोहनलालजी शास्त्री कटनीने ध्यानसे अवलोकन कर अपने सुझाव दिये इसके लिये इन दोनो महानुमानों का हृदयसे कृतज्ञ हूँ । डॉ. देवेन्द्रकुमारजी नीमच डॉ. फूलचंद प्रेमी व डॉ. कमलेशजी बनारस ने ध्यान से इसे अध्ययनकर अपनी सत्सम्मति देकर अनुगृहीत किया है इन सब विद्वानोके हम आभारी है।
स्व. श्रद्धेय पं. कैलाशचन्द्रजी सि. शा. बनारसद्वारा अनुवादित आलापद्धति की सहायता से विशेषार्थ लिखने में
(३३)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org