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विस्तृत वर्णन करने के साथ उनमें पाये जानेवाले औपशमिकादि भावोंकी विस्तार से निरूपण किया है । मंगलाचरण, उत्थानिका और अन्तिम उपसंहार की गाथाओंको मिलाकर सब ७०१ गाथायें है । गुणस्थानों के स्वरूपका वर्णन एवं अन्य मतों की उत्पत्तिनिरूपण करनेवाली गाथाएँ प्रायः प्राचीन ग्रन्थोंसे संकलित की गई हैं। अत: यह संग्रह का सार्थक नाम है । आ. देवसेनकी रचनाओं में यह सबसे बडी रचना है।
२ आराधनासार- इसमें ११५ गाथाओं द्वारा दर्शनाराधना ज्ञानाराधना, चारित्राराधना और तपाराधना इन चार आराधनाओं का वर्णन किया गया है । भगवती आराधना नामसे प्रसिद्ध आ. शिवार्य की विस्तृत मूलाराधानाका सार खींचकर इसकी रचना की गईं हैं।
३ लघुचक्रनय या लघु नय चक्र-- इसमे ८७ गाथाकों द्वारा नयोंका स्वरूप उनकी उपयोगिता और भेद प्रभेदोका वर्णन किया है।
४ दर्शनसार-- इसमे ५१ गाथाओं द्वारा श्वेताम्बर मत, बोद्धमत, द्राविड संघ, यापनीय संघ, माथुर संघ और भिल्ल संघ की उत्पत्ति का वर्णन कर उसकी समीक्षाको गई है।
५ तत्त्वसार-- इस ग्रन्थमें ७४ गाथाओ द्वारा जीवोंके सबसे अधिक उपादेय शुद्धतत्वकी उपलब्धि कैसी होती है इसका वर्णन किया गया है । वस्तुतः इसके पूर्वरचित द्वादशांगवाणी के सारभूत समयसारादि ग्रन्थोकासार ही खींचकर इसमें निबद्ध कर दिया गया है।
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