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सुगमता रही इसके लिये पंडितजीके उपकार मानते है ।
आदरणीय पं.नरेन्द्रकुमारजी भिसीकर शास्त्री इस प्रकाशन प्रेरणा स्रोत हैं वे जिनवाणो की निःस्वार्थ सेवा करनेवाले तत्त्वज्ञ सुलझे विद्वान है । आपने इसके संशोधनादि का कार्य किया है । प. राजमलजी भोपाल विशेष रूपसे विस्तारसे विशेषार्थ लिखने के लिये प्रेरित करते रहे, अत: इन दोनो विद्वानोके प्रति हृदयसे कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।
अनुवाद आदिमें कोई त्रुटि दृष्टिगोचर हो तो विद्वान बन्धु सूचित करने की कृपा करें।
जिनवाणी सेवकबा. भुवनेन्द्रकुमार शास्त्री
श्री महावीर स्वाध्याय सदन बांदरी (सागर) म. प्र.
दि. १७१८१८९ रक्षाबन्धन पूर्णिमा
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