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विशेषताए निम्र प्रकारसे हैं- जीव में असद भूत व्यवहार नय की अपेक्षा कर्म नोकर्म भी चेतन स्वभाव हैं, (क्योंकि जीव के साथ संश्लेष संबंध हैं। किन्तु परम भाव ग्राहक नय की अपेक्षा कर्म नोकर्म अचेतन स्वभाव हैं (क्योंकि वे पुद्गल से रचित होने के कारण अचेतन ही हैं। ) यद्यपि पुदगल का अणु उपचारसे भी अमूर्तिक नही हैं फिर भी साम्व्यवहारिक प्रत्यक्ष (इन्द्रिय प्रत्यक्ष) का विषय न होनेसे असद्भूत व्यवहार नय की अपेक्षा से उसमे अमूर्तत्व का आरोप कर लिया जाता हैं।
इस नय योजनाका इतना ही आशय है कि यावन्मात्र द्रव्यका जैसा स्वभाव है उसी प्रकार वैसाही व्यवस्थित हैं, वैसा ही प्रमाण ज्ञानसे जाना जाता हैं और प्रमाण के अववय नय भी उसी प्रकार से जानते है।
१२) प्रमाण
सकला देशी होनेसे जो पूर्ण वस्तु को ग्रहण करनेवाला होता हैं या करता है वह प्रमाण हैं। जिसके द्वारा वस्तुतत्त्व को जाना जाता हैं वह प्रमाण हैं। वह दो प्रकार का हैं- सविकल्प और निर्विकल्प । मन की सहायतासे उत्पन्न होनेवाले ज्ञान को सविकल्प कहते है। उसके चार भेद है- मतिज्ञान, श्रुतज्ञान अवधिज्ञान और मनःपर्यय ज्ञान । जो मन की सहायता के बिना केवल आत्मासेही उत्पन्न होता हैं वह निर्विकल्प केवल ज्ञान है।
१३) नय को व्युत्पत्तिप्रमाण के द्वारा गृहीत वस्तुके एक अंश को ग्रहण करने को
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