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________________ स्वभावों की सिद्धिके लिये यहां विस्तारसे नयों की योजना की गई हैं ।" प्रमाण तो उन नाना स्वभावोंसे युक्त दव्य को एक साथ जानता है किन्तु उनको पृथक पृथक् कौन नय किस अपेक्षा से जानता हैं" इसी आधार को लेकर अस्तित्वादि वीस स्वभावोंके माध्यमसे उनको ग्रहण करनेवाले नयों की विस्तार से चर्चा की गई हैं। स्वद्रव्य स्वक्षेत्र, स्वकाल और स्वभाव को ग्रहण करनेवाले नय की अपेक्षा अस्तित्व स्वभाव है । परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल और पर भाव को ग्रहण करनेवाले नय की अपेक्षा नास्तिक स्वभाव है (अर्थात् स्वद्रव्यक्षेत्रादि द्रव्य की अपनी मर्यादा है पर द्रव्यक्षेत्रादि पर द्रव्य की मर्यादा हैं)। उत्पाद व्यय को गौण करके रात्ता को मुख्यतासे ग्रहण करनेवाले नय की अपेक्षा नित्य स्वभाव है । (इस नय में द्रव्य की मुख्यता हैं । ) किसी पर्याय को ग्रहण करनेवाले नय की अपेक्षा अनित्य स्वभाव है (यहां पर्याय ग्रहण की मुख्यता है । ) भेद कल्पना निरपेक्षनयसे एक स्वभाव हैं । (जहां एक होता हैं वहा द्वितीयादि का भेद नही होता है । ) अन्वय ग्राही द्रव्यार्थिक नय अपेक्षा एक होते हुए भी द्रव्य अनेक स्वभाव है। (अनेक होते हुए भी यह वही है । इस प्रकार अनेको में एकता का प्रत्यभिज्ञान बनारहता है । यही द्रव्य के ग्रहण की अन्वय ग्राह्यता है। इसी प्रकार भेद स्वभाव, अभेद स्वभाव, भव्य स्वभाव अभव्य स्वभाव, चेतन स्वभाव, अचेतन स्वभाव, मूर्त स्वभाव, अमूर्त स्वभाव, एक प्रदेशी स्वभाव, बहु प्रदेशी स्वभाव, विभाव स्वभाव, शुद्ध स्वभाव, अशुद्ध स्वभाव और उपचारित स्वभाव इन सब स्वभावोंकी व्यवस्थिति किस किस नय की अपेक्षा है इसका निर्देश यहां विस्तारसे किया गया है। पुद्गल और जीव ये वैभाविक परिणत होनेसे उनकी कुछ (२४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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