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________________ उसी प्रकार व्यवहार नयके भी सामान्य भेदक व्यवहार नय और विशेष भेदक व्यवहार नय येदी भेद है। _ ऋजु सूत्र नयके सूक्ष्म ऋजु सूत्र नय और स्थूल ऋजु सूत्र नय ये दो भेद हैं। शब्द, समभिरूढ और एवंभूत नयके प्रत्येकके एक ही भेद हैं। इस प्रकार सब नयोंके सब मिलकर १०+६+३+२+२+२+ १+१+१=२८ भेद होते है। जो न यो के समीप होते है वे उपनय कहलाते हैं। अब उपनय के भेद कहते हैं । सद्भत व्यवहार नय के दो भेद हैं। शुद्धसद्भूत व्यवहार नय अशुद्ध सद्भूत व्यवहार नय । असद्भूत व्यवहार नय के तीन भेद हैं- १) स्वजाति असद्भूत व्यवहार नय, २) विजाति असद्भूत व्यवहार नय, ३) स्वजातिविजाति असद्भूत व्यवहार नय । उपचारित असद्भूत व्यवहार नयके तीन भेद है । १) स्वजाति उपचरित असद्भूत व्यवहार नय, २) विजाति उपचरित असद्भूत व्यवहार नय तथा, ३) स्वजाति विजाति उपचरित असद्भूत व्यवहार नय । (नोट- इन सब के उदाहरण वलक्षण ग्रन्थमें सूत्र की टीका में व्याख्यान करेंगे वहां से विशेष देखें) नयों के व्याख्यान का प्रयोजन- इन सब नयों का व्याख्यान यथार्थ परिज्ञान की प्राप्ति में साधक होने से मोक्षका कारण है । जैसा वीरसेन स्वामीने धवला टीका में निरूपित किया हैं कि नय पदार्थों के यथार्थ परिज्ञान मे निमित्त होनेसे मोक्षका कारण हैं । उसका हेतु पदार्थो की यथार्थ उपलब्धि की निमित्तता है।' अभिप्राय यह है कि १. धवला पु८ पृ १६६-१६७ । (१७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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