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________________ इत्यादि सातभंगों का नाम सकलादेश है क्योंकि प्रमाण निमित्त होनेसे इसके द्वारा स्यात् शब्दसे समस्त अप्रधान धर्मोकी सूचना की जाती है। द्रव्य मात्र को कहना या पर्याय मात्र को कहना व्यवहार का विषय है । द्रव्य का भी तथा पर्याय का भी निषेध करके वचन अगोचर कहना निश्चय का विषय है । द्रव्य रूप ही वही पर्याय रूप है इस प्रकार दोनोंको ही प्रधान करके कथन करना या जानना प्रमाण का विषय हैं । प्रमाण और नय में प्रमाण ही श्रेष्ठ हैं क्योंकि जो पदार्थ प्रमाण के विषय है उन्हीं में नय की प्रवृत्ति होती हैं इसके साथ प्रमाण सकलादेशी होनेसे समुदाय को विषय करता है और नय अवयव को विषय करता हैं अतः नय से प्रमाण श्रेष्ठ है। ६) नय-प्रमाण के भेदों या विकल्पों को नय कहते है। ज्ञाता के अभिप्राय को नय कहते है। प्रमाण से गृहीत वस्तु के एक देश वस्तुका निश्चय करना ही अभिप्राय है' प्रमाण से प्रकाशित जीवादि पदार्थोकी पर्यायो का प्ररूपण करना नय है। अनन्त पर्यायरूप वस्तु की किसी एक पर्याय का ज्ञान करते १. धवला पु८१ १६५ २. तदवयवानया: । आलाप पद्धति सूत्र ३. धवला पु ८प १६३ । ४.धवला पु ८ पृ १६६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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