________________
क्योकि वह एक प्रदेशी हैं । द्रव्यगुण पर्याय स्वभावादिकका ज्ञान प्रमाण और नय विवक्षासे होता हैं।
५) प्रमाण- पूर्वोक्त द्रव्य, गुण, पर्याय, स्वभाव आदिके जाननेका उपाय सम्यग्ज्ञानको ही प्रमाग कहते है । सम्यग्ज्ञानके द्वारा वस्तुका यथार्थ परिच्छेद (विश्लेषणात्मक ज्ञान) होता है । प्रमाण के पांच भेद है- मति, श्रुत अवधि, मनः पर्यय और केवल ज्ञान । मतिश्रुत ज्ञान परोक्ष है। क्योंकि वे इन्द्रिय और मन आदिकी पर की सहायतासे जानते है । जो अन्यकी सहायता के विना केवल आत्मासेही जानते है उसे प्रत्यक्ष कहते है। अवधिज्ञान और मनः पर्यय ज्ञान रूपी और कर्म संबद्ध जीवोंको प्रत्यक्ष जानते है इसलिये देश प्रत्यक्ष है। केवलज्ञान त्रिकाल त्रिलोकवर्ती पदार्थोको एकसाथ जाननेसे सकल प्रत्यक्ष हैं।
स्वार्थ और परार्थकी अपेक्षा प्रमाणके दो भेद हैं । श्रुतज्ञान को छोडकर शेषचारों ज्ञान स्वार्थ प्रमाण हैं। क्योंकि उनमें वचनात्मक प्रवृत्ति नहीं होती हैं । श्रुतज्ञान स्वार्थ और परार्थ दोनों प्रकारका है। साथ वह सवितर्क भी हैं । ज्ञानात्मक प्रमाण को स्वार्थ प्रमाण कहते हैं और वचनात्मक प्रमाणको परार्थ कहते है। वस्तु सामान्य विशेषात्मक होनेसे सबको विषय करनेवाला प्रमाणात्मक ज्ञान सकलादेशी हैं । 'स्यादस्ति' अर्थात् 'कपंचित्'
१. सर्वार्थ सिद्धि अ. १ सूत्र पृ २० ।
(१४)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org