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________________ ( १२२ ) आलाप पद्धती व्यवहारो द्विविधः सद्भूत व्यवहारोऽसद्भूत व्यवहारश्च ।। २१८ ॥ व्यवहार नय के दो भेद हैं- सद्भूत व्यवहार नय और असद्-भूत व्यवहार नय ॥ २१८ ॥ तत्रैक वस्तु विषयः सद्भूत व्यवहार, भिन्नवस्तु विषयोऽसद्भूत व्यवहारः ॥ २१९ ॥ उनमें एक ही वस्तुमें भेद व्यवहार करने वाला सद्भत व्यवहार नय है और भिन्न वस्तुओं में अभेद व्यवहार करनेवाला असद्भूत व्यवहार नय है ॥ २१९ ॥ तत्र सदभत व्यवहारोऽपि द्विविध उपचरितानप चरित भेदात् ॥ २२० ।। । उनमें से सद्भुत व्यवहार नय के भी दो भेद हैं-उपचरित सदभत व्यवहार नय और अनुपचरित सद्भुत व्यवहार नय ।। २२० । तत्र सोपाधि गुणगुणि भेद विषय उपचरित सद्भुत व्यवहारो यथा जीवस्य मति ज्ञानादयो गुणाः ॥ २२१ ॥ उपाधि सहित गण गणी में भेद व्यवहार करने वाला उपचरित सद्भूत व्यवहार नय है| जैसे जीव के मति ज्ञानादि सोपाधि गुण है ॥ २२१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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