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( १२१) तत्र निश्चयनयोऽभेद विषयोऽ व्यवहारो भेद विषयः ॥ २१४ ।।
उनमें निश्चय नय अभेद को विषय करता है और व्यवहार नय भेद को विषय करता हैं ।। २१४ ।।
तत्र निश्चयो द्विविधः, शुद्ध निश्चयोऽशुद्ध निश्चयश्च ।। २१५ ॥
उनमें से निश्चय नय के दो भेद है- शुद्ध निश्चय नय और अशुद्ध निश्चयनय ॥ २१५ ।।।
तत्र निरुपाधिक गुणगुण्यभेद विषयकः शुद्ध निश्चयो यथा-केवल ज्ञानादयो जीव इति ॥ २१६ ॥
उनमें जो उपाधि रहित गुण और गुणी में अभेद को विषय करता है वह शुद्ध निश्चय नय हैं । जैसे कवळ ज्ञान आदि जीव है ।। २१६ ॥
सोपाधिक गुण गुण्य भेद विषयोऽशुद्ध निश्चयो, यथा मतिज्ञाना दयो जीव इति ॥ ११७ ॥
उपाधि सहित गुण और गुणी में अभेद को विषय करने वाला अशुद्ध निश्चय नय है। जैसे मतिज्ञान आदि जीव है॥ २१७ ।।
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