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आलाप पद्धती अठ्ठाईस मूल गुण चारित्र हैं-इनका यथावत् सम्यक् पकार पालन करना चर्या हैं- इस प्रकार चारित्र और चर्यासंबंध कहा जाता है।
ये संबंध सत्यार्थ भी है । असत्यार्थ भी और सत्यासत्यार्थ उभयरुप भी है- जैसे शरीर आत्मा का संश्लेषम संबंध हैं वह वस्तुओंके संयोग की अपेक्षा देखे जाने पर सत्य है किंतु पृथक पथक जीव और कर्म (पुद्गल रचित) दो द्रव्यों के द्रव्य क्षेत्र, काल भाव की अपेक्षा देखा जावे असत्यार्थ हैं । क्योंकि दोनों मिले हुये होने पर भी दोनों के द्रव्यक्षेत्रादि पृथक पृथक है। साथ में मिले हुये होने पर भी कभी मिलकर एक नहीं हो जाते हैं इस प्रकार असत्यार्थ हैं। तथा एक साथ व्यवहार से मिले हुये तथा परमार्थ से पृथक् पृथक् देखने पर सत्यासत्यार्थ होते हैं ।। २११॥
इस प्रकार आगम पद्धतिसे नयों की व्युत्पत्ति की गई।
अध्यात्मनय ॥ १७ ॥
पुनरप्यध्यात्मभाषया नया उच्यन्ते ॥ २१२ ॥
फिर भी अध्यात्म भाषा के द्वारा नयों का कथन करते हैं ।। २१२ ॥
तावन्मूलनयो द्वौ निश्चयो व्यवहारश्च ॥ २१३॥
(प्रथम ही) व्यवहार ।। २१३ ।।
मूल
नय
दो हैं- निश्चय और
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