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संबंध, इत्यादि संबंधों को लेकर होता है इस तरह उपचरित असभ्दूत व्यवहार नय का अर्थ सत्यार्थ,अपत्यार्थ और सत्यासत्यार्थ होता है।
विशेषार्थ- यहां यह बतलाया है कि उपचार नाम का कोई नय नहीं हैं क्योंकि पहिले कह आये है कि "भेद और उपचार रुप से वस्तु का व्यवहार करना व्यवहार नय हैं" एतावता इस कथन से यह बात स्पष्ट हो गई कि उपचार नय के ही अंतर्गत हैं । उपचार अनेक सबंधों को लेकर के होता हैअविनाभाव सबंध कहते है- जो जिसके बिना न हो जैसे रागादिक का द्रव्यकर्मों के बंध होने में अबिनाभाव संबंध हैं बिना रागादिक के कर्म बंध होता ही नही है । संश्लेष संबंध दो द्रव्योंके दूध पानी की तरह एक मेक होकर मिलने को संश्लेष संबंध कहते हैं जैसे जीव के प्रदेश और कामणिस्कंध इन दोनोंका संश्लेष संबंध है । परिणाम परिणामि संबंध- द्रव्य और पर्याय में होता हैं. जैसा आत्मा परिणामी है रागादिक उसकी पर्याय परिणाम है इन दोनों का सबंध परिणाम परिणामी संबंध है। श्रद्धाश्रद्धेय संबंध दो द्रव्यों में या एक द्रव्य में भी होता है- जैसे आदि सात तत्त्व श्रद्धेय है आत्माके दर्शन गुण के माध्यम से जो श्रद्धा होगी वह श्रद्धा है। इस प्रकार श्रद्धा और श्रद्धा करने योग्य देव शास्त्र गुरु या सात तत्त्वों आदि में श्रद्धा श्रद्धेय सबंध होता है । जो जानता है वह ज्ञान हैं जिन पदार्थो को जानता है वे ज्ञेय हैं (ज्ञान के विषय है) जैसे मतिश्रुत आदि पांच ज्ञान हैं जीवादि छह द्रव्य और नौ पदार्थ व सात तत्त्व ज्ञेय स्वपर पदार्थ है-इन दोनों का ज्ञान ज्ञेय संबंध हैं । श्रावक बारह व्रत तथा साधु के Jain Education International For Private & Personal Use Only
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