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(१२३)
निरूपाधि गुण गुणि भेद विषयोऽनुपचरित सद्भुत व्यवहारो यथा-जीवस्य केवलज्ञानदयो गुणाः ।। २२२ ॥
निरुपाधि गुण-गुणी में भेद व्यवहार को विषय करने वाला अनुपचारित सद्भुत व्यवहार नय है जैसे-जीव के केवल ज्ञानादि गुण हैं ।। २२२ ॥
असद्भुत व्यवहारो द्विविध : उपचरितानुपचरित भेदात् ।। २२३ ॥
असद्भूत व्यवहार दो प्रकार का हैं- उपचरित असद्भूत व्यवहार नय और अनुपचरित असद्भूत व्यवहार नय ॥ २२३ ॥
तत्र संश्लेष रहित वस्तु सम्बन्ध विषय उपचरितासद्भूत व्यवहारो, यथा देवदत्तस्य धनमिति ।। २२४ ॥
मेल रहित वस्तुओं मे संबंध को विषय करनेवाला उपचरित असद्भूत व्यवहार नय है । जैसे देवदत्त का धन ॥ २२४ ॥
संश्लेषसहित वस्तु संबंध विषयोऽनुपचरिता सद्भुत व्यवहारो यथा जीवस्य शरीरमिति ॥ २२५ ।।
तथा मेल सहित वस्तुओंमें संबंध को विषय करनेवाला अनुपचरित असद्भूत व्यवहार नय हैं। जैसे- जीव का शरीर ॥ २२५ ।।
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