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________________ ( ११७ ) गुणगुणिनोः संख्यादि भेदात्भेदकः सद्भूत व्यवहारः ॥ २०६ ।। गुण और गुणी में संज्ञा संख्या आदि से जो भेद करता है वह सद्भुत व्यवहार नय है ॥ २०६ ॥ अन्यत्र प्रसिद्धस्य धर्मस्यान्यत्र समारोपणा ऽ सदभत व्यवहारः ।। २०७॥ अन्य प्रसिद्ध धर्म का अन्य में आरोप करने को असद् भत व्यवहार नय कहते हैं ।। २०७ ।। असद्भत व्यवहारः, एवोपचारः, उपचारादप्युपचारं यःकरोति स उपचरितासद्भत व्यवहारः ।। २०८ ।। असद्भूत व्यवहार ही उपचार है। उपचार का भी जो उपचार करता है वह उपचरित असद्भूत व्यवहार नय हैं ।।२०८।। गुण गुणिनोः पर्यायपर्यायिणोः स्वभाव स्वभाविनो: कारककारकिणो दः सद्भूतव्यवहारस्यार्थः ।। २०९ ॥ गुण-गुणी में, पर्याय-पर्यायी में, स्वभाव-स्वभाववान् में, कारक कारकवान् में भेद करना अर्थात् वस्तुतः जो अभिन्न है उसमें भेद करना सद्भूत व्यवहार नय का अर्थ है ।। २०९ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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