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आलाप पद्धती
शद्वे गाय, वाणी-इंद्रिय अर्थ होनेपर भी गाव अर्थको ग्रहण करना अतः ये तीनों शब्द इंद्र के ही रुढ अर्थ वाचक है।। २०१।।
एवं क्रियाप्रधानत्वेन भूयत इत्येवंभूतः ॥ २०२।। ___ जो क्रिया की प्रधानता से वस्तु को ग्रहण करता है वह एवं भूत नय है ।। २०२ ॥
(इन नयों का सूत्र क्रं. नं. ६३ से ७९ तक पिछले प्रकरण में स्पष्टीकरण किया जा चुका है वहां देखना चाहिये)
शुद्धाशुद्ध-निश्चयो द्रव्याथिकस्य भेदो॥२०३ ॥
शुद्ध निश्चय नय और अशुद्ध निश्चय नय द्रव्याथिक नय के ये दो भेद है ।। २०३ ॥ अभेदानुपचारतया वस्तु निश्चीयत इति निश्चयः ।। २०४॥
____ अभेद और अनुपचार रुप से वस्तु का कथन निश्चय करना निश्चय नय है ।। २०४ ।।
भदोपचारतया वस्तु व्यवन्हियत इति व्यवहारः॥२०५॥
भेद और उपचार रुप से वस्तु का कथन व्यवहार करना व्यवहार नय हैं।
(निश्चयं नय से अभेद वस्तु का निश्चय किया जाता है और निश्चय नय द्वारा निश्चित वस्तु में भेद कथन व्यवहार कसा यह व्यवहार नय हैं) ॥ २०५ ॥
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