SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ११४ ) आलाप पद्धती सादि नित्य पर्याय एवार्थः प्रयोजनमस्येति सादि नित्य पर्यायार्थिकः ॥ १९३ ॥ सादि नित्य पर्याय ही जिसका अर्थ- प्रयोजन है वह सादि नित्य पर्यायार्थिक नय है ।। १९३ ।। शुद्ध पर्याय एवार्थः प्रयोजनमस्येति शुद्धपर्यायार्थिकः ॥ १९४ ॥ शुद्ध पर्याय हीं जिसका अर्थ प्रयोजन है वह शुद्ध पर्यायार्थिक नय हैं ॥ १९४ ॥ अशुद्ध पर्याय एवार्थः प्रयोजनमस्येत्यशुद्ध पर्यायार्थिकः ॥ १९५ ॥ अशुद्ध पर्याय ही जिसका अर्थ- प्रयोजन है वह अशुद्ध पर्यायार्थिक न्य हैं ॥। १९५ ।। इति पर्यायार्थिकस्य व्युत्पत्तिः । इस प्रकार पर्यायार्थिक की व्युत्पत्ति है । नैकं गच्छतीति निगमः । निगमो विकल्पस्तत्र भवो नैगमः ॥ १९६ ॥ जो एक को नहीं ( अनेक को ) जाता है वह निगम कहलाता हैं। निगम का अर्थ है विकल्प उसमें जो हो वह नैगम कहलाता है अर्थात् जो वस्तु अभी निष्पन्न नहीं हुई है उसके संकल्प मात्र को जो ग्रहण करना है वह नैगम नय हैं ।। १९६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy