________________
प्रमाण लक्षण
( १०९) सविकल्पं मानसम् । तच्चतुविधं-मतिश्रुतावधि मनःपर्ययरूपम् ॥ १७९ ॥
मन और इंद्रियों की सहायता से उत्पन्न हुये ज्ञान को सविकल्प प्रमाण कहते है। वह चार प्रकार का है-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनः पर्ययज्ञान
विशेषार्थ- मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनः पर्यय ज्ञान ये चार ज्ञान मानस अर्थात् सविकल्प (प्रमाण) हैं। मतिज्ञान इन्द्रिय और मन की सहायता से जानता हैं । श्रुतज्ञान मतिज्ञान से जाने हुये पदार्थो को विशेष जानता हैं । अवधिज्ञान द्रव्यक्षेत्र काल और भाव को मर्यादामे रुपी पदार्थोको ज्ञानसे प्रत्यक्ष स्पष्ट जानता है और मनः पर्यय ज्ञान दूसरे के मन में तिष्ठते हये रुपी पदार्थों या रुपी द्रव्य संबंधी विचारों को स्पष्ट जानता है इस प्रकार इन चारों ज्ञानों को जानने में कुछ न कुछ विकल्प होने से चारों ज्ञान सविकल्प प्रमाण है ॥ १७९ ।।
निर्विकल्पं मनोरहितं केवलज्ञानम् ।। १८० ॥
जो ज्ञान इद्रिय और मन की सहायता के बिना केवल आत्मा को ज्ञान शक्तीसे ही होता है या जानता है वह केवल ज्ञान है ।। १८० ॥
इति प्रमाणस्य व्युत्पति । इस प्रकार प्रमाण की व्युत्पत्ति पूर्ण हुई ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org