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________________ ( १०८ ) शुद्ध द्रव्यार्थिकेन शुद्ध स्वभावः ॥ १७४ ।। शुद्ध द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षासे शुद्ध स्वभाव हैं ॥ १७४ ॥ अशुद्ध द्रव्यार्थिक नयसे अशुद्ध स्वभाव है ।। १७५ ।। अशुद्ध द्रव्यार्थिक नयसे अशुद्ध स्वभाव है ॥ १७५ ॥ असद्भूत व्यवहारेणोपचरित स्वभावः ।। १७६ ॥ असद्भूत व्यवहार नयसे उपचरित स्वभाव हैं ।। १७६ ।। इस प्रकार नय योजना समाप्त हुई || अथ प्रमाण लक्षण ॥ १२ ॥ आलाप पद्धती सकल वस्तु ग्राहकं प्रमाणम् । प्रमीयते परिच्छिद्यते वस्तुतत्त्वं येन ज्ञानेन तत्प्रमाणम् ।। १७७ ॥ जो पूर्ण वस्तु को ग्रहण करता है वह प्रमाण हैं । जिसके द्वारा वस्तु तत्त्व को जाना जाता है उस को प्रमाण कहते है ।। १७७ ।। तत् द्वेधा सविकल्पेतरभेदात् ॥ १७८ ॥ वह दो प्रकार का हैं - एक सविकल्प दूसरा निर्विकल्प ॥ १७८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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