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नय योजना अधिकार
( १०७ )
भिन्न द्रव्योंका गुण (धर्म) है । आत्मासे बद्ध कर्मोकी अमूर्तता अभिभूत (अप्रगट) नहीं हैं बल्कि कर्मों के कारण आत्मा को अमूर्तता कधेचित् अभिभूत हैं इसलिये आत्मामें मूर्तता का उपचार किया जाता है किन्तु कर्मो में अमूर्तता का उपचार नहीं किया जाता। इस समाधानसे पुनः यह शंका होती हैं कि यदि उपचार से भी पुद्गल में अमूर्त स्वभाव नही है तो पहिले क्यों कहां गया कि जोव पुद्गल मे इक्कीस इक्कीस भाव होते हैं? तो इस शंका का समाधान यह हैं-कि पुद्गलका परमाणु परोक्ष है (इतना सुक्ष्म है) जैसे इन्द्रियोंसे स्कन्ध का प्रत्यक्ष होता हैं वैसे परमाणुका नही होता है । अतः साम्व्यवहारिक प्रत्यक्ष को विषय न होनेसे परमाणुमें अमूर्तिकका उपचार करके पुद्गल द्रव्य में किसी अपेक्षा इक्कीस भाव कहे हैं ।। १७२ ।।
शद्धाशद्ध द्रव्याथिकेन विभाव स्वभावत्वम ।। १७३ ।।
शुद्धाशुद्ध द्रव्याथिक नय को अपेक्षा जीव और पुद्गल विभाव स्वभाव है।
विशेषार्थ- द्रव्यमें स्वयं एक ऐसी शक्ति हैं जिसके कारण वह पर का संयोग. मिलनेपर स्वभाव रूपसे परिवर्तन कर विभाव रूप हो जाता हैं और यह शक्ति जीव और पुद्गल द्रव्य में ही है इसी कारण इस नयसे विभाव स्वभावपना कहा गया है ।। १७३॥
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