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भालाप पद्धती
उपचारसे भी अमर्तिक नही हैं अर्थात उपचार से भी परमाणको अमतिक नहीं मानते हो तो पुद्गल में इक्कीसवां भाव अमतिक नही रहेगा? (और पूर्व में सूत्र नं ३० तीस में कह आये हैं कि पुद्गल में इक्कीस स्वभाव होते है) यह एक प्रश्न है ॥ १७१ ।।
(समाधान)-परोक्ष -प्रमाणापेक्षया असद्भत व्यवहारेणाप्युपचारेणामूर्तत्वं पुद्गलस्य ।। १७२ ॥
(उस पूर्व सूत्र में की गई शंका समाधान यह है कि पुद्गल का परमाणु परोक्ष है अर्थात् इन्द्रियगोचर न होनेसे साम्व्यवहारिक प्रत्यक्षका विषय नहीं हैं इसलिये उपचरित असदभूत व्यवहार नय से उसमें अमूर्तिकपने का आरोप करके पुद्गलके इक्कीस भाव कहे गये है।
विशेषार्थ- स्वभाव अधिकार प्रकरण सूत्र क्र. ३० में पुद्गल के इक्कीस भाव बतला आये है। और यहां यह कहा कि पुद्गल का परमाणु उपचारसे भी अमतिक नही है। इससे ही ऐसी शंका होना भी स्वभाविक है कि जीव और पुद्गल में बन्ध होनेसे जैसे आत्मा को मूर्तिक का उपचार करके मूर्तिक कहा जाता है वैसे ही यहां भी पुद्गल को अमूर्तिक का उपचार करके पुदलाणु को अमूर्तिक क्यों नहीं कहा जाता है क्योंकि वह अमूर्तिक त्मिासे वंघ को प्राप्त है?
उसका समाधान यह है कि जहा पुद्गल का मूर्तित्वभाव अमिभूत (अप्रकट) नहीं हैं किन्तु उद्भूत (प्रकट) है वहा अमूर्तता स्वभाव संभव नहीं है, क्योंकि अमूर्तता पुद्गल द्रव्य से
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