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नय योजना अधिकार
(१०५)
भेद कल्पना निरपेक्षेणेतरेषांचाखण्डत्वादेक प्रदेशस्वभावत्वम् ।। १६८॥
भेद कल्पना की अपेक्षा करने पर धर्म अधर्म आकाश तथा चेतन द्रव्य भी अखण्ड होनेसे एक प्रदेशी हैं।।
(किन्तु) भेद कल्पना सापेक्षेण चतुर्णामपि नाना प्रदेशस्वभावत्वम् ।। १६९ ॥
भेद कल्पना की अपेक्षा करने पर शेष धर्म, अधर्म, आकाश और चेतन ये चारों द्रव्य अनेक प्रदेशी है ।। १६९ ॥
पुद्गलाणोरुपचारतो नाना प्रदेशत्वं, नच कालाणोः स्निग्धरूक्षत्वाभावात् ऋनत्वाच्या।। १७०॥
पुद्गलाणु उपचारसे नाना प्रदेशी (अनेक प्रदेशी) है। (क्योकि बद्ध वन्य अवस्था को प्राप्त होकर अन्य परमाणु से बद्ध होकर बहुप्रदेशी स्कन्ध रूप हो जाता हैं) किन्तु कालाणुमें बद्ध होकर गुण न होनेसे अन्य कालाणुओंके साथ वन्ध को प्राप्त नहीं होता हैं । इस कारण कालाणु उपचारसे भी बहुप्रदेशी नही हैं तथा कालाणु स्थिर हैं । १७० ।।
अणोरमूर्तत्वाभावे पुद्गलस्यैकविंशतितमो भावो न स्यात् ।। १७१ ॥
(यहां एक शंका होती है कि) यदि पुद्गल का परमाण
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