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आलाप पद्धती
नय के स्वरुप और भेद ॥ १३ ॥
प्रमाणेन वस्तुसंगृहीतार्थंकांशो नयः श्रुत विकल्पो वा ज्ञातुरभिप्रायो वा नयः । नाना स्वभावेभ्यः व्यावृत्य एकस्मिन् स्वभावे वस्तु नयति प्रापयतीति वा नयः ॥ १८१ ॥
प्रमाणज्ञान के द्वारा गृहीत वस्तु के एक अंश को ग्रहण करने का नाम नय हैं ॥ अर्थात् प्रमाण से वस्तु के सब अंशों को ग्रहण करके ज्ञाता पुरुष अपने प्रयोजन के अनुसार उनमें से किसी एक धर्म की मुख्यता से कथन करता हैं वह नय है । इसी से ज्ञाता के अभिप्राय को नय कहा है। श्रुतज्ञान के भेद नय है। इस तरह जो नाना स्वभावोंसे वस्तु को पृथक करके एक स्वभाव में स्थापित करता है वह नय हैं ॥ १८१ ।।
स द्वधा सविकल्प-निविकल्प भेदात ॥ १८२ ॥
वह दो प्रकार का हैं-सविकल्प और निर्विकल्प । जो नय भेदरुप से वस्तु को ग्रहण करता हैं वह सविकल्प नय हैं और जो अभेद रुप से वस्तु को ग्रहण करता हैं वह निर्विकल्प नय है ॥ १८२ ॥
इति नयस्य व्युत्पत्तिः।
इस प्रकार नय' की व्युत्पत्ति की गई हैं ।
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