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आलाप पद्धति
सर्वसापेक्ष न करते हुये नियमित मर्यादित एक धर्म वाचक करनेके कारण सर्वथा-नियमित एकांत पक्षवादी वस्तुको अन्यधर्म निरपेक्ष एक-धर्म युक्त ही मानते है इसलिये वह एकांत पक्षवादी का वचन वस्तुविपरीत-मिथ्या एकांत कहा जाता हैं।
तथा अचैतन्य पक्षेपि सकल चैतन्योच्छेदः स्यात् ।। १४१ ॥
उसी प्रकार चैतन्य निरपेक्ष सर्वथा अचैतन्य पक्षको जो एकांत पक्षवादी स्वीकार करते है, मानते है उनके मतसे संपूर्ण चैतन्य तत्त्वका उच्छेद-नाश-अभाव माननेका प्रसंग आता है।
स्य एकान्तेन आत्मनः मोक्षस्य न अवाप्तिः स्यात् ।। १४२ ।।
यदि आत्माको सर्वथा एकांतसे कर्मबद्ध होनेके कारण मतही माना जावे तो कदापि मोक्षकी प्राप्ति न होनेका प्रसंग आवेगा ॥
सर्वथा अमूर्तस्य अपि तथा आत्मनः संसार विलोपः स्यात् ।। १४३ ।।
उसी प्रकार यदि सर्वथा एकांतसे आत्माको अमूर्त माना जावे तो जीवके साथ अनादि कालसे प्रवृत्त जो संसार प्रत्यक्ष प्रतीत हो रहा हैं उसका लोप होगा।
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