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एकांत पक्ष दोष (नयामास) अधिकार
इस प्रकार ज्ञाना द्वैत अथवा ब्रम्हा द्वैत की तरह चैतन्य एकांत पक्ष माननेपर लोकमें जो अन्य अचेतन द्रव्य है उनका अभाव मानने का प्रसंग आवेगा । तथा सर्वत्र शुद्ध ज्ञान दर्शन स्वरुप चैतन्य ही माना जावे तो जो लोकमें ध्यान-ध्येय-ज्ञान-ज्ञेय-गुरुशिष्य आदि अनेक प्रकार विविधता प्रतीत होती है उसका अभाव मानने का प्रसंग आवेगा । लोक परमात्माका ध्यान करते है। यदि सब लोक शुद्ध चैतन्य परमात्म स्वरुप हैं तो ध्यानध्याता-ध्येय भेद का अभाव होगा । यदि सर्वत्र शुद्ध ज्ञानका ही सद्भाव होगा, तो ज्ञेयके अभावमें ज्ञान किसको जानेगा। सर्वत्र शुद्ध पूर्ण ज्ञानवाले गुरुही होंगे तो शिष्यके अभावमें उनके गुरुपना काभी अभाव मानने का प्रसंग आवेगा।
सर्वथा-शद्वः सर्व प्रकारवाची, अथवा सर्व कालवाची, अथवा सर्व नियमवाची वा, अनेकान्त सापेक्षी वा? यदि सर्व प्रकारवाची, सर्वकालवाची अनेकाना वाची वा, सर्वादिगणे पठनात् सर्वशब्दः एवंविधः, चेत्, नहि सिद्धं नः समीहितं । अथवा नियमवाची चेत्, तहि सकालार्यानां तव प्रतीतिः कथं स्यात्? नित्यः अनित्यः, एकः, अनेकः, भेदः अभेदः, कथं प्रतीतिः स्यात् नियमित पक्षत्वात् ॥ १४० ॥
सर्वथा यह शद्व क्या सर्व प्रकारवाची है? या सर्व कालवाची हैं? या अनेकान्तवाची है? यदि सर्व प्रकारवाची, यदि वा सर्व कालवाची, यदि वा अनेकान्तवाची हो तो हमारा (अनेकान्त
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