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________________ आलाप पद्धति (९१) वस्तुका स्वचतुष्टय रुपये भी परिणमन न माननेपर वस्तुका सर्वथा शून्यता का प्रसंग आवेगा। क्योंकि जो वस्तु अपने स्वचतुष्टयसे भी आदि अभव्य न योने योग्य हैं । और परचतुष्टय रुपसे भी न होने योग्य है इस प्रकार सर्वथा न होने योग्य वस्तु सर्व शन्य दोष युक्त होवेगी । स्वभाव स्वरुपस्य एकान्तेन संसारा भावः॥१३७॥ वस्तु यदि सर्वथा एकांतसे सदासर्वदा स्वभाव रुपही रहती है ऐसा माना जावे तो संसार अवस्था में जो कर्म-नोकर्मके संयोगवश रागादिरुप विभाव परिणमन होता है उसका अभाव होनेसे संसारका अभाव माननेका प्रसंग आवेगा । इसलिये संसार निरपेक्ष सर्वथा स्वभाव-एकांत पक्ष भी नया भास हैं। क्योंकि मोक्ष यह अवस्था संसारपूर्वक होती है। यदि संसार का अभाव है तो मोक्षका भी अभाव माननेका प्रसंग आवेगा। विभाव पक्षेऽपि मोक्षस्य अपि अभावः ॥ १३८ ॥ सर्वथा विभाव एकांत पक्ष मानने पर भी सदा संसार रहनेपर कदापि मोक्ष न होनेसे स्वभाव अवस्था स्वरुप मोक्षके अभावका प्रसंग आवेगा। सर्वया चैतन्यमेव इत्युक्तेऽपि सर्वेषां शुद्ध ज्ञानचंतन्यावाप्तिःस्यात् तथासति ध्यानं ध्येयं, गुरु-शिष्यादिअभावः ॥ १३९ ।। लोकमें सर्वथा चेतन द्रब्य ही हैं, कोई अचेतन नहीं हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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