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________________ (८८) एकांत पक्ष दोष (नयाभास) अधिकार कारण वस्तुको सर्वथा एक स्वरुप मानना पडेगा। सर्वथा एकरुप माननेसे वस्तुमें पर्याय विशेषोंका भी अभाव मानना पडेगा । विशेषोंके अभावमे सामान्य का भी अभाव मानने का प्रसंग आवेगा पज्जयविजुदं दव्वं दवविजुन्ता हि पज्जया णत्थि । दोण्हं अणण्णभूदं भावं समणा परूविति ।। (पंचास्तिकाय) पर्याय विशेष रहित द्रव्य सामान्य कदापि संभव नही हैं । तथा द्रव्य सामान्य रहित पर्याय विशेष विना आधार रह नही सकते । द्रव्य और पर्याय, सामान्य और विशेष इनसे अनन्यभूत पदार्थ है ऐसा आचार्य कहते है । निविशेष हि सामान्यं भवेत् खरविषाणवत् । सामान्यरहितत्वाच्च विशेषस्तद्वय् एव हि ॥ विशेष रहित सामान्य गधेके सिंग समाक अथवा आकाश पुष्प के समान असत् है । उसीप्रकार सामान्य रहित विशेष भी सर्वथा असत् है । अनेकपक्षेऽपि तथा द्रव्याभावः, निराधारत्वात् । आधर-आधेय-अभावात् च ॥ १३२ ।। सर्वथा अनेक एकांत पक्षमें भी उक्त प्रकारसे द्रव्यक्त अभाव दोष आता हैं । अनेक गुण और पर्याय द्रव्यके अभावमें निराधार ठहर नही सकते । आधार-आधेय भाव का अभाव होनेसे सर्व पदार्थोका अभाव माननेका प्रसंग आता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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