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________________ भालाप पद्धती ( ८७ ) उत्पन्न होनेसे अपने पक्ष की भी सिद्धि न कर सकनेके कारण सकल शून्य दोष का प्रसंग आता हैं। नित्यस्य एकरुपत्वात्, एकरुपस्य अर्थ क्रियाकारिस्वाभाव अर्थक्रियाकारित्वाभावे द्रव्यस्य अपि अभावः ।। १२९ ॥ वस्तुको सर्वथा नित्य एकांत माननेंपर वह सदा एकरुप रहेगो । सदा एकरुप रहनेसे वस्तुमें उत्पाद-व्ययरूप परिणमनरुप अर्थ क्रिया नहीं होगी। अर्थक्रियाके अभावमें वस्तुका भी अभाव होगा ।। अनित्य पक्षेपि निरन्वयत्वात् अर्थक्रिया कारित्वाभावः । अर्थक्रियाकारित्व अभावे द्रव्यस्य अपि अभावः ॥ १३० ॥ वस्तुको सर्वथा क्षणिक-विनाशनीय अनित्य एकांतपक्ष माननेसे वस्तुका उत्तरसमयमें सर्वथा निरन्वय नाश होनेसे वस्तुमें जो उत्पाद-व्यय-ध्रुवरुप परिणमनरुप अर्थक्रिया होती रहती है वह अर्थक्रियाकरित्व सिद्ध न होनेसे द्रव्यके अभाव का प्रसंग आता है। द्रव्यका सर्वथा अभाव माननेपर सकल शून्यताका प्रसंग आता है। एकस्वरुपस्य एकान्तेन विशेषाभावः, सर्वथा एकरुपत्वात् । विशेषाभावे सामान्यस्य अणि अभावः ॥ १३१॥ वस्तुमें उत्पाद-व्ययरूप परिणमनरुप अर्थक्रिया न माननेके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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